આભાર

Thanks a lot.

અભૂતપૂર્વ સિદ્ધિનો આનંદ.ગુજરાતની નંબર 1 સંસ્કૃત યુટ્યુબ ચેનલ પરિવારમાં 15 હજાર સભ્યો પૂર્ણ થયા અને રોજેરોજ નવા સભ્યો જોડાઈ રહ્યા છે.બધા જ મિત્રોનો હૃદયપૂર્વક આભાર માનું છું.સંસ્કૃત શીખવાનો આપ સૌનો ઉત્સાહ મને રોજ નવી નવી પ્રેરણા પુરી પાડતો રહ્યો.સાથે સાથે એક વાત એ પણ કરવાની કે,સોશિયલ મીડિયા પર (સમયના અભાવે) સક્રિય નથી રહી શકતો માટે સોશિયલ મીડિયાના તમામ માધ્યમો પરથી વિદાય લઈ રહ્યો છું.ફરી ફરીને આપ સૌ મિત્રો, શુભેચ્છકો અને હિતેચ્છુઓ નો ખુબ ખુબ આભાર માનું છું.સૌને નમન.💐🙏💐

संस्कृत भाषाकी जादुई शक्ति

🌹संस्कृत भाषा से अपनी बीमारी को ठीक करे🌹

संस्कृत में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं।

(०१) अनुस्वार (अं) और विसर्ग (अ:) :-

संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग।

पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —

यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और

नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—

यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।

अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।

उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।

कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि गुरु जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है। मैं तो केवल यह बताना चाहता हूँ कि संस्कृत बोलने मात्र से उक्त प्राणायाम अपने आप होते रहते हैं।

जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- ” राम फल खाता है“

इसको संस्कृत में बोला जायेगा- ” राम: फलं खादति”

राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं। यही संस्कृत भाषा का रहस्य है।

संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना।

२- शब्द-रूप :-

संस्कृत की दूसरी विशेषता है शब्द रूप। विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है,जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं। जैसे राम शब्द के निम्नानुसार २५ रूप बनते हैं।
यथा:- रम् (मूल धातु)
राम: रामौ रामा:
रामं रामौ रामान्
रामेण रामाभ्यां रामै:
रामाय रामाभ्यां रामेभ्य:
रामत् रामाभ्यां रामेभ्य:
रामस्य रामयो: रामाणां
रामे रामयो: रामेषु
हे राम! हेरामौ! हे रामा:!

ये २५ रूप सांख्य दर्शन के २५ तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है। और इन २५ तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ को प्राप्त होने लगती है।

सांख्य दर्शन के २५ तत्व निम्नानुसार हैं।-

आत्मा (पुरुष)

(अंत:करण ४ ) मन बुद्धि चित्त अहंकार

(ज्ञानेन्द्रियाँ ५ ) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण

(कर्मेन्द्रियाँ ५) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक्

(तन्मात्रायें ५ ) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द

( महाभूत ५ ) पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश

३- द्विवचन :-

संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है द्विवचन। सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। इस द्विवचन पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है।

जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:।

इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं।

४ सन्धि :-

संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं।

”इति अहं जानामि” इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है, और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है।

यथा:-
१ इत्यहं जानामि।
२ अहमिति जानामि।
३ जानाम्यहमिति ।
४ जानामीत्यहम्।

इन सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है। जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं नीरोग हो जाता है।

इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है।

यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है।

इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहते हैं।

Copy Paste – 28 Humanity

कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर मैँ एक कार्यक्रम देख रहा था जो कि आहार खानपान आदि पर आधारित था ।
हालाँकि इस तरह के कार्यक्रम में अपनी कोई विशेष रुचि तो नही फिर भी अनमने मन से देख ही रहा था ।


तो उस कर्यक्रम में दिखाया गया कि केरल की एक महिला के घर कोई विशेष अतिथि आने वाले थे,
तो महिला ने विशेष अतिथि के लिए विशेष भोजन बनाने का विचार किया और चल पड़ी स्थानीय बाजार
कुछ विशेष खरीदारी करने ।


वो गई एक माँस के बाजार में और
दुकानदार से पूछा -: कुटिपाई है ?
दुकानदार-: नही है ।
अब अपनी भी थोड़ी उत्सुकता जगी
कि ये कुटिपाई क्या होता भई ?
उस महिला ने 10-12 दुकानों पर पूछा तब एक दुकानदार ने हामी भरी कि हाँ मेरे पास कुटिपाई है ।
और उसने महिला को कुटिपाई उपलब्ध कराया
और चैनल वालों ने कुटिपाई का वर्णन किया,
तब मैँ एकदम से सन्न रह गया !!!


क्या होता है कुटिपाई ?


एक गर्भवती बकरी जिसके प्रसव का समय बिल्कुल समीप हो मतलब एक या दो दिन में ही प्रसव होने वाला हो मतलब गर्भस्थ शिशु पूर्ण हो चुका होता है तब उस बकरी की हत्या करके उस गर्भस्थ शिशु को निकाला जाता है और वो होता है “कुटिपाई” !!!


फिर वो महिला बताने लगी कि कुटिपाई बहुत स्वादिष्ट होता है नरम होता है,
जल्दी पकता है,
चबाने में आसानी होती है,
पचाने में आसानी होती है,
ईट्स सो डिलिशियस !!!
और मैँ बैठा बैठा सोच रहा कि
इंसान और हैवान में क्या फर्क रह गया ?


कुछ समय पहले शायद डिस्कवरी का ही एक वीडियो सामने आया था कि एक शेरनी ने एक मादा बन्दर का शिकार किया और जब उसका पेट फाड़ा तो उसमें से एक सम्पूर्ण शिशु बाहर आया तो शेरनी की ममता जाग उठी और शिशु को दुलारने लगी ।
और शायद उस शिशु का उसने पालन पोषण भी किया ।


अभी हाल में ही एक वीडियो आया जिसमे एक मगरमच्छ एक मादा हिरन को पकड़ लेता है कुछ देर दबोचने के पश्चात मगरमच्छ को अहसास होता है कि मादा हिरन गर्भवती है तो वो अपने जबड़े खोल उस मादा हिरन को आजाद कर देता है ।


ये सब क्या है भई ?
मनुष्य मनुष्यता भूल रहा सिर्फ जीभ के स्वाद के लिए उसे गर्भस्थ शिशु चाहिए !!
मनोरंजन के लिए एक हथिनी की क्रूर हत्या !!
और हाँ एक बात और याद आई,
चीन का बेबी सूप !
घिन्न आने लगी स्वयं को मनुष्य कहने में ।
और दूसरी तरफ जानवर क्या दिखा रहे वो देखिए ।


मतलब एक तरह से जानवर और मनुष्य एकदूसरे से अपना व्यवहार की अदला बदली कर रहे ।
क्या पृथ्वी का अंत निकट है ?
ये कोरोना ये आँधी तूफान बवंडर भूकम्प साइक्लोन आदि ।
रहने लायक नही रही ये पृथ्वी आओ करें आह्वाहन
कि खोल दो तीसरी आँख हे नटराज,
हो जाने दो ताण्डव फिर से ।
अब तो सच मे फट ही पड़े ये पृथ्वी और समा ले स्वयं में इस तमाम प्रकृति को ।
फिर से सृजन करें ब्रह्मा ।
नई धरती नया आसमान हो ।
जहाँ इंसान का मतलब इंसान हो ।

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